मंगलवार, 1 मार्च 2011

अथश्री 'राजा राम' कथा

डीआर और आरडी में आजकल पैसे को लेकर जंग छिड़ी हुई है. डीआर-वही, दिग्गी राजा यानी दिग्विजय सिंह. और आरडी को तो समझ ही गए होंगे. नहीं, अरे गलती से भी कभी सुबह-सुबह टीवी नहीं खोला क्या, वरना अनुलोम-विलोम और कपालभाती कराते उन्हें जरूर देखा होता. हां भइया, रामदेव बाबा की बात कर रहे हैं. अब आप कहेंगे कि डीआर और आरडी के बीच पैसा कहां से आ गया तो बताए देते हैं. हम कालेधन की बात कर रहे हैं.
 
डीआर रियासत के मालिक रहे, सूबे के सीएम रहे. पूरी जवानी बिताई एमपी में, उमर बढ़ी तो चले आए दिल्ली. वहां भी चैन नहीं मिला तो यूपी में जमीन तलाशने लगे. ऐसा नहीं है कि एमपी में उनके पास जमीन-जायदाद की कमी थी. पर उन्हें मालूम है कि यूपी फिट तो दिल्ली हिट. अभी तक ऐसी कोई खबर नहीं आई कि उनके पास कालाधन है पर जिस गांधी-नेहरू खानदान के लिए वह सियासत करते हैं, जिनके लिए कुछ भी बोलने में उन्हें परहेज नहीं होता, उस पर कालाधन रखने का आरोप जब तब जरूर लग जाता है. फिलहाल, जो कोई कालेधन को लेकर आरोप लगाता है, डीआर के निशाने पर आ जाता है.
 
आरडी को भी कौन समझाए, योग की शिक्षा देते रहते. लेकिन ओपन स्काई क्लास हिट हुई तो गुरुभाई को दवा के कारोबार में लगा दिया. पर यह क्या. जैसे जैसे दवा की, बीमारी बढ़ती गई. योग सिखा दिया, दवा खिलवा दी तो स्वाभिमान जोर मारने लगा. बना डाला भारत स्वाभिमान मंच.
 
भारत को तो वैसे भी गुरुओं का देश कहा जाता है. फिर वह तो योगगुरु हैं. मांग कर डाली कि गांधी-नेहरू खानदान का जो काला धन स्विस बैंक में जमा है, उसे वापस लाया जाए. देश हित में उसका इस्तेमाल किया जाए. बस यहीं बात चुभ गई.
 
डीआर कहने लगे, कोई भी जरूरी बात होती है, तो उन्हें खबर जरूर दी जाती है. जिस तरह 26/11 फेम करकरे ने हिंदू आतंकवादियों से जान के खतरे के बारे में फोन करके बताया था, उसी तरह शायद स्विस बैंक के चेयरमैन ने भी बताया है कि गांधी-नेहरू खानदान का कोई अकाउंट नहीं है. ऐसे में काले धन की बात तो सोची भी नहीं जानी चाहिए. और तो और, उन्होंने आरडी को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया. पूछ लिया कि इतना पैसा कहां से आया. कितना काला है, कितना सफेद. आजकल अनुलोम-विलोम की क्लास में आरडी को बाकायदा सफाई देनी पड़ रही है कि किसी भी बैंक में उनका खाता नहीं है. जो कुछ भी उनका बताया जा रहा है, वह सब उनके पीठ या आश्रम का है. जो भी चढ़ावा आता है, चंदा मिलता है, उसका बाकायदा लिखत में हिसाब रखा जाता है.
 
वैसे भी मठों, आश्रमों, मंदिरों के पास अकूत संपदा का पुराना इतिहास रहा है. लोग-बाग श्रद्धा से न जाने क्या क्या और कितना कुछ दान करते हैं, चढ़ावा चढ़ाते हैं. फिर, अगर ज्यादा गड़बड़ी मिली तो सरकार के पास मंदिरों-मठों-आश्रमों को अपनी तरह से ठीक करने का विकल्प खुला रहता है. अब यह क्या बात हुई-किसी ने कहा आप चोर हैं तो उलट कर पूछ लिया क्या आप ईमानदार हैं. अरे आप भी तो चोर हैं. यानी अगर सामने वाला भी चोर है, तो चोरी गलत नहीं. असल में कोई काम गलत तभी होता है, जब उसे कुछ लोग ही कर रहे होते हैं. जब गलत काम करने वाले ही ज्यादा हों, तो यह मान लिया जाना जाता है कि उसे सामाजिक मान्यता मिल गई है.
 
आरडी से अनुरोध है कि काले धन को लेकर सवाल पूछने का विचार छोड़ दे. अगर उनके पास नहीं है, तो तलाशें जुगाड़ और अगर है तो लगाएं जोर से दहाड़.