सोमवार, 21 सितंबर 2015

बीपीएल सीरीज में बीपीएल वोटों पर मारामारी

बीपीएल (बिहार पॉलिटिकल लीग) वन-डे सीरीज का ऐलान हो चुका है। पांच मैचों वाली इस सीरीज का आगाज 12 अक्टूबर को हो रहा है, जबकि आखिरी मैच 5 नवंबर को खेला जाएगा। बाकी के तीन मैच 16 व 28 अक्टूबर एवं 1 नवंबर को होंगे। सीरीज के नतीजे 8 नवंबर को आएंगे।

एसपी-एनसीपी और लेफ्ट फ्रंट को मिलाकर वैसे तो सीरीज में कुल चार टीमें हिस्सा ले रही हैं, पर असली मुकाबला महा-गठबंधन (जेडी-यू, आरजेडी, कांग्रेस) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक (राज)-गठबंधन (बीजेपी, एलजेपी, हम व आरएलएसपी) के बीच ही है। दोनों टीमें सीरीज पर कब्जा जमाने के लिए जोर-शोर से तैयारी में जुटी हुई हैं। नेट प्रैक्टिसों का दौर जारी है। जीत की रणनीति बनाने के लिए कोच और अनुभवी खिलाड़ियों की भी मदद ली जा रही है। मजेदार यह कि बीपीएल सीरीज में सबसे ज्यादा मारा-मारी बीपीएल (बिलो पावर्टी लाइन) वोटों को लेकर है। उन्हें रिझाने-पटाने के लिए सारे तीर-तिकड़म आजमाए जा रहे हैं। पहले आजमाए जा चुके नुस्खों पर भी अमल किया जा रहा है। बीपीएल वोट (इसमें दलित-महादलितों की तादाद सबसे अधिक है) जिसकी तरफ झुक जाएंगे, जीत का सेहरा उसी के सिर बंधेगा।

टीम महागठबंधन के कैप्टन, मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद को बीपीएल वोटरों का सबसे बड़ा खैरख्वाह बता रहे हैं। लोहार जाति को अनुसूचित जाति में शामिल कराने का रिकार्ड पहले ही वह अपने नाम करा चुके हैं। उनकी मानें तो उन्होंने सिर्फ दलितों का ही नहीं, बल्कि महादलितों का भी भला किया है। यह दीगर बात है कि उनके इस दावे को लेकर उनकी, अपनी टीम के मास्टर ब्लास्टर यानी लालू जी से ठनी हुई है। लालूजी को भला कैसे यह गंवारा हो सकता है कि पिछले करीब एक दशक से जिस बीपीएल की उन्होंने दुकानदारी की, आम खाने का वक्त आने पर कोई दूसरा उन्हें गुठली थमा दे। दोनों अपने को बीपीएल वोटरों का मसीहा साबित करने में दिन-रात एक किए हुए हैं। सुशासन बाबू और कुशासन बाबू नाम से शोहरत बटोर चुके दोनों नेताओं की इसी नूरा-कुश्ती के चलते सोनिया जी की कांग्रेस ने बीपीएल वोटों पर अभी तक अपना हक नहीं जताया है। राहुल बाबा भी इस बार किसी दलित या महादलित के यहां भोज पर नहीं जा रहे हैं।

लोकसभा चुनावों में गैर राजग दलों का हश्र देख, महागठबंधन की नींव रखने वाले माननीय नेता जी उर्फ मुलायम सिंह यादव भी शायद इन्हीं सब वजहों से गांठ खोलकर बंधन मुक्त कर चुके हैं। वैसे भी, कोई माने या ना माने पर, क्रिकेट सॉरी कुश्ती के असल पहलवान-माफ कीजिएगा खिलाड़ी तो वो ही हैं। अबकी बार वह अकेले ही बल्लेबाजी करेंगे।

राज-गठबंधन का किस्सा भी कुछ खास अलग नहीं है। राम बिलास पासवान के चिराग अब खुद को बीपीएल का स्वाभाविक चिराग साबित करने की हरसंभव कोशिश में हैं। उनका कहना है कि बीपीएल वोटरों को उनका वाजिब हक, केंद्र में मंत्री रहते उनके पिता ने ही दिलवाया। वह उनके पिता ही हैं, जिन्होंने बीपीएल वोटरों की जिंदगी में चिराग रौशन किया। सो बीपीएल वोटरों पर सबसे ज्यादा हक उन्हीं का बनता है। 

उधर, दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की कामयाबी से प्रभावित होकर उसी की तर्ज पर हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम) बनाने वाले सूबे के शार्ट टर्म सीएम रहे जीतन राम मांझी को लगता है कि नाव तो सिर्फ मांझी ही पार लगा सकता है, फिर चाहे उस पर बीपीएल वोटर सवार हों या फिर हम या आप कोई भी। यही वजह है कि आए दिन राज-गठबंधन के दोनों राम (जीतन राम और राम बिलास) में यह साबित करने की होड़ लगी रहती है कि बीपीएल वोटरों का असली नुमाइंदा कौन है? हम तो बस यही कह सकते हैं कि राम की माया राम ही जानें।

कुरमी-कोइरी वोटरों के बूते सूबे की राजनीति में मजबूत दखल रखने का दावा करने वाले कुशवाहा का भी दिल है कि मानता नहीं। उन्हें लगता है कि इस बार की बीपीएल सीरीज में अपने कोटे के जितने खिलाड़ियों को टीम में शामिल करा लिया जाए, उतना ही आगे की राजनीति के लिए बेहतर रहेगा। 

केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी इस भी सीरीज में बीपीएल को लेकर कम चिंतित नहीं है। उसे इस बात का बेहतर अंदाजा है कि सूबा बिहार के लगभग 40 लाख बीपीएल परिवारों से ताल्लुक रखने वाले वोटर किसी भी सियासी दल का खेल बना या बिगाड़ सकने का माद्दा रखते हैं। बीपीएल वोटरों की अहमियत समझते हुए ही बीजेपी शासित किसी सूबे में अन्त्योदय कार्यक्रम चलाया जा रहा है, कहीं उन्हें किफायदी दर पर चावल दिया जा रहा है, तो कहीं घर बनाने के लिए जमीन, बिजली बिल में माफी और विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति दी जा रही है। यह भी सबको पता है कि बीपीएल समीकरण को ध्यान में रखते हुए ही बीजेपी ने सूबे में एलजेपी, हम और आरएलएसपी को साथ रखा है। यही नहीं, शायद इसी वजह से पार्टी ने अभी तक सीएम पद के लिए किसी के नाम की घोषणा नहीं की है। 

अब यह तो वक्त ही बताएगा कि बीपीएल वोटरों के सहयोग से बीपीएल सीरीज पर किसका कब्जा होगा। हम इंतजार करेंगें नतीजा आने तक।