गुरुवार, 16 जून 2011

बहुरेंगे कव्वाली के दिन!

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को क्या हो गया है? कौन-सी बात हो गई कि उन्हें अपना सूबा रास नहीं आ रहा. जिसे देखो, वही यूपी की तरफ भाग रहा है. भागने वाली कहावत तो भइया किसी और ‘लिविंग थिंग’ से जुड़ी है. कहीं, महानुभावों को यूपी ‘शहर’ तो नहीं नजर आने लगा. जिसके पांव निकले, वह चाहे जहां बस गया, पर एमपी नहीं लौटा. पहले मोती लाल बोरा भागे, उत्तर प्रदेश की गवर्नरी की, महामहिम बने. अब दिल्ली में बैठ कर कांग्रेस का खजाना संभाल रहे हैं. एमपी की सियासत को अलविदा बोल दिया. उसके बाद बारी आई दिग्विजय सिंह की. वही, मीडिया में छाए रहने वाले दिग्गी राजा. आजकल कांग्रेस पार्टी में यूपी के प्रभारी महासचिव हैं. वहां कांग्रेस का ‘ठीहा’ मजबूत कर रहे हैं. कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्रियों को भागता देख भाजपा का बेचैन होना लाजिमी था. भगवा पार्टी सोचने लगी,जरूर कोई राज है, चलो पता करते हैं. कामयाबी नहीं मिली तो तय हुआ, आजमा कर देखेंगे. भेज दिया साध्वी उमा भारती को यूपी. वैसे भी बहुत दिनों से खाली बैठी थीं. कोई ‘एसाइनमेंट’ नहीं था. भरी सभा में आडवाणी जी का अपमान काफी भारी पड़ रहा था उन्हें. बहरहाल, अब ‘घरवापसी’ की औपचारिकता पूरी हो चुकी है.
हालांकि साधु-साध्वियों के लिए घर मायने नहीं रखता. महान संत कबीर दास तो पहले ही कह गए हैं, ‘कबिरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ, जे घर फूको आपनो, चले हमारे साथ.’ मतलब साफ है, न अपने घर की चिंता, न दूसरों के घर की. साध्वी से कहा गया कि यूपी में ‘पांचाली’ बनी पार्टी की लाज बचानी है. लालजी, कलराजजी, राजनाथजी, कटियारजी.... कल्याणजी को इसमें मत गिनिएगा, वह तो पहले ही तलाक दे चुके हैं.
साध्वी को फायर ब्रांड नेता माना जाता है. जिन लोगों को मुलायम राज में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद आंदोलन की याद होगी, उन्हें पता है कि साध्वी को फायर से यू ही नहीं जोड़ा जाता. आप दीपा मेहता वाली ‘फायर’ के बारे में तो नहीं सोचने लगे. खैर, कहने का मतलब यह कि फायर से कैसे खेला जाता है, साध्वी अच्छी तरह जानती हैं. उस समय अगर यूपी के साथ-साथ सारा देश तपने लगा था, तो उसमें साध्वी का योगदान कम नहीं था. पर ऐसा लगता है कि 20 सालों में यूपी में भाजपा की आग ठंडी पड़ गई. विधानसभा चुनाव अगले साल होने है, पर अभी से कहा जा रहा है कि भाजपा को तीसरे या चौथे स्थान के लिए कोशिश करनी है. समीक्षकों, विश्लेषकों की इसी भविष्यवाणी के बाद शायद साध्वी को यूपी लाया गया है.
हालांकि दिग्गी राजा जिस तरह से ‘भड़काऊ बीज’ छींट रहे, उससे यही लगता है कि बाकी किसी के लिए कोई जगह बचेगी ही नहीं.  उन्हें और उनकी पार्टी को यकीन है कि फसल जरूर लहलहाएगी. इसीलिए वह कभी बटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी बताते हैं, तो कभी लादेन को लादेनजी कह देते है. अचानक उन्हें चिंता सताने लगती है कि लादेनजी को इस तरह नहीं दफनाया जाना चाहिए था. कभी कहते हैं कि 26/11 के मुंबई हमले से पहले करकरे ने फोन कर बताया था कि उन्हें हिंदू आतंकवादियों से खतरा है. यानी क्या कहना है, इसका कभी ख्याल नहीं रहा. अब यह तो नहीं पता, कि जो कुछ कहते हैं, वह उनके ही दिमाग की उपज होती है, या फिर किसी की सलाह लेते हैं. संभव है किसी का हुक्म तामील करते हों. माहौल देखकर नहीं लगता कि उनके ‘जहर बुझे तीर’ कमाल कर पाएंगे.
साध्वी और दिग्गी राजा दोनों को अपनी-अपनी पार्टी के आलाकमान का आशीर्वाद हासिल है. साध्वी के लिए घर लौटना आसान नहीं था. उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी.  कई बार माहौल बना. लगा आज या कल घोषणा हो जाएगी. पर रास्ते में रोड़ा आ गया. सबसे ज्यादा विरोध तो उनके अपने सूबे वाले ही कर रहे थे. ये तो अच्छा था कि आलाकमान चाहते थे कि वह घर लौटें . हालांकि उन्हें भी अपने ‘सेनापतियों’ को मनाने-समझाने के लिए काफी पसीना बहाना पड़ा. दिग्गी राजा का हाल तो सभी जानते हैं. उन्हें पार्टी का ‘दूत’ कम युवराज का ‘अंबेसडर’ अधिक माना जाता है. कभी कभी तो वह ‘स्वयंभू प्रवक्ता’ की जिम्मेदारी भी संभाल लेते हैं. उन्हें लगता है कि युवराज को अगर देश की कुर्सी मिली, तो संभव है सूबा उत्तर प्रदेश उनके हवाले कर दिया जाए.
आजकल फिल्मों में कव्वाली कम ही देखने को मिलती है. नई पीढ़ी के लोग तो कव्वाली पसंद भी नहीं करते, लेकिन उम्रदराज लोगों खुश हैं. उन्हें लग रहा है कि साध्वी और दिग्गी राजा यूपी आ गए हैं तो ‘कव्वाली’ के दिन बहुरेंगे.