शिक्षक दिवस (5
सितंबर) के अवसर पर देशभर के स्कूली बच्चों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
सीधी बातचीत को लेकर देश में खूब चर्चा हो रही है। बातचीत के लिए प्रधानमंत्री को जम
कर कोसा रहा है। डंका पीटा जा रहा है कि बच्चों से बातचीत कर प्रधानमंत्री ने
जघन्यतम अपराध किया है। अखबारों में लेख लिखे जा रहे हैं, परिचर्चा के लिए टीवी
चैनलों में होड़ लगी है, सोशल मीडिया के पन्ने रंगे जा रहे हैं। मोदी कुपित तबका
नुक्कड़ -चौराहों पर इसकी चर्चा कर गौरवान्वित हो रहा है। पर शायद, सब पर भारी है
सोशल मीडिया।
इसे सोशल मीडिया का
ही कमाल कहेंगे कि शिक्षक दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री-स्कूली बच्चों की सीधी
बातचीत ने जाने-अनजाने बंगलुरु में रहने वाले द हिन्दू के नायाब फोटोग्राफर भाग्य
प्रकाश के भाग्य का पिटारा खोल दिया। भाग्य प्रकाश ने इससे पहले न जाने कितनी
तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया होगा, पर शिक्षक दिवस के मौके पर उनके कैमरे
में कैद हुई एक नायाब तस्वीर ने फौरी तौर पर उन्हें देश का सबसे चर्चित छायाकार
बना दिया है। अब यह बात तो भाग्य प्रकाश ही बता बताएंगे कि छींका बिल्ली के भाग्य
से टूटा या फिर उनके।
दरअसल, भाग्य प्रकाश
ने जिस तस्वीर को अपने कैमरे में कैद किया है, उसमें एक क्लास में लगी टीवी पर
मोदी के संबोधन का सजीव प्रसारण हो रहा है। उसी बीच एक छोटा बच्चा अपनी स्वाभाविक
जरूरत पूरी करने के लिए क्लास से बाहर जाने की अनुमति मांग रहा है, जबकि उपस्थित
शिक्षिका उसे ऐसा करने से मना कर रही है। बस एक स्वाभाविक घटना को हमारा सोशल
मीडिया ले उड़ा, गोया प्रधानमंत्री कार्यालय से कोई विशेष अधिसूचना जारी हुई थी कि
मोदी के भाषण के दौरान सभी बच्चे सावधान की मुद्रा में बैठे रहेंगे, उनकी पैंट
गीली हो तो अपनी बला से।
इसमें दो राय नहीं
हो सकती कि स्वाभाविक जरूरतें सबको परेशान करती हैं। वो मोदी मुदित लोग भी हो सकते
हैं और मोदी कुपित लोग भी। यह बात महिलाओं पर भी लागू होती है और पुरुषों पर भी।
युवाओं पर भी लागू होती है और बुजुर्गों पर भी। स्कूली बच्चों पर भी और
शिक्षक-शिक्षिकाओं पर भी।
स्कूली बच्चा
एकबारगी अपनी स्वाभाविक जरूरत से समझौता नहीं कर पाया, यह बात तो समझ में आती है,
पर अगर कोई शिक्षक या शिक्षिका सबकुछ समझ कर भी नासमझी करे तो इसके लिए दोषी कौन
है। क्या उसके संस्कार, क्या उसकी शिक्षा या फिर वह माहौल, जिसमें वह पली-बढ़ी है।
या फिर देश की मौजूदा शिक्षा व्यवस्था दोषी है, मौजूदा शिक्षा मंत्री दोषी हैं या मौजूदा
प्रधानमंत्री। या फिर वे जिन्होंने हर चीज में कमी ढूंढने का शगल पाल रखा है।
कहां तो इस बात की
खुले दिल से प्रशंसा होनी चाहिए थी, कि चलो किसी प्रधानमंत्री ने बच्चों से सीधी
बात करने की पहल तो की। बाल मन में झांकने की कोशिश तो की। उनकी हौसला आफजाई तो
की। याद नहीं आता कि इससे पहले किसी प्रधानमंत्री ने (चाचा नेहरू का जमाना मुझे
याद नहीं) कभी इस तरह की कोशिश की थी। अलबत्ता पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल
कलाम बच्चों के हर सवाल का जवाब देने को तैयार रहते थे। और कहां अब यह बहस छिड़
चुकी है कि क्या इस करवा चौथ पर चांद निकलने से पहले प्रधानमंत्री मोदी देश की
महिलाओं को संबोधित करेंगे।
जय भाग्य, जय
भारत...............