शुक्रवार, 15 मार्च 2013

14 तारीख, 15वां जलसा, 16 की सौगात

कल यानी 14 मार्च को श्रीमती सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष का पद भार संभाले 15 साल हो गए । जश्न के इस मौके पर कांग्रेस नीत यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलाएंस (यूपीए) सरकार के मंत्रियों ने 16 साल में सहमति से सेक्स के हक के एलान के रूप में एक तीर से दो निशाने किए। एक तरफ तो देश को नायाब तोहफा देने का प्रहसन हुआ और दूसरी तरफ यथा नाम तथा गुण की प्रासंगिकता साबित करने का ढोंग कि यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलाएंस वास्तव में प्रोग्रेसिव है। कैबिनेट का यह फैसला अगर कानून की शक्ल लेता है तो फिर 16 साल की उम्र में सहमति से सेक्स को जायज माना जाएगा। 16 बरस की बाली उमर को सलाम।
कैबिनेट का यह अहम फैसला इसलिए काबिले तारीफ है, क्योंकि कैबिनेट ने सहमति से सेक्स की उम्र 16 साल करने पर सहमति बनाने में जरा भी देर नहीं लगाई। यह अलग बात है कि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ सहमति से सेक्स की उम्र 18 साल ही रहने देने पर अड़ी हुई थीं। बुरा हो 16 दिसंबर की उस काली रात का, जिसकी वजह से यूपीए कैबिनेट को इतने अहम फैसले पर आनन फानन में मुहर लगानी पड़ी। बुरा इसलिए, क्योंकि देश को शर्मसार करने वाली उस रात की अभागी घटना के बाद से अखबारों के पन्ने बलात्कार की घटनाओं से अटे पड़े हैं। लग रहा है जैसे उस घटना ने उत्प्रेरक यानी कैटेलेटिक एजेंट का काम किया हो। क्या स्कली बच्चियां, क्या नवयौवनाएं, अब तो दादी-नानी की उम्र वाली भी बलात्कारियों का निवाला बन रही हैं।
कैबिनेट का तर्क है कि आज के परिवेश में बच्चे कम उम्र में ही समझदार हो जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि सेक्स एजूकेशन और इंटरनेट की एक्सेसिबिलिटी से 16 साल की उम्र में ही बच्चों में अच्छे-बुरे का फर्क समझने की काबिलियत आ जा रही है। अब चूंकि देश में मैरेज एजूकेशन स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है, इसलिए शादी की उम्र 18 साल रहेगी, क्योंकि बकौल सरकार उसके लिए समझदारी 18 की उम्र में ही आ सकती है। यानी सहमति से सेक्स करते रहिए, लेकिन शादी की तय उम्र जस की तस रहेगी। कैरीकुलम का हिस्सा नहीं होने की वजह से वोटिंग राइट भी 18 साल में ही मिलेगा। ड्राइविंग भी स्कूलों में नहीं पढ़ाई जाती, सो ड्राइविंग लाइसेंस के लिए 18 साल के होने का इंतजार करना पड़ेगा। तो क्या मान लिया जाए कि कल को जब देश में साइबर लिटरेसी और बढेगी, तो सहमति से सेक्स की उम्र सीमा 12 साल हो जाएगी। सच कहूं तो 14 मार्च को हुए इस अहम फैसले के बाद यह तय करना मुश्किल हो गया है कि यूपीए सरकार के राज में देश वास्तव में प्रोग्रेस कर रहा है या हम उस जमाने में लौट रहे हैं, जब बाल विवाह प्रचलन में था।
कैबिनेट ने अपने फैसले में कहा है कि महिलाओं को घूरना या उनका पीछा करना भी गैर जमानती अपराध माना जाएगा। यानी कानून बनने के बाद अगर किसी महिला ने झूठा आरोप लगा दिया तो भी सजा भुगतने के लिए तैयार रहिए। बलात्कार की स्थिति में तो मेडिकल जांच से पीड़िता के आरोपों की पुष्टि हो जाती है, लेकिन घूरने या पीछा करने के आरोप की पुष्टि के लिए सरकार कौन सा टेस्ट या तरीका इजाद करेगी, इसका बेसब्री से इंतजार है। दहेज उत्पीड़न कानून का किस तरह दुरुपयोग हुआ यह बताने की जरूरत नहीं है। अगर घूरना या पीछा करना गैर जमानती अपराध बना तो वह पड़ोसी मुल्क के ईश निंदा कानून (ब्लैसफैमी) की तरह ही होगा, जिसमें किसी तरह के सबूत की जरूरत नहीं होती। इस काले कानून की वजह से हाल में लाहौर के बादामी बाग इलाके में ईसाइयों के 150 से ज्यादा घर जला दिए गए।
दरअसल हुआ यह कि वहां कच्ची शराब का धंधा करने वाले मसीह और इमरान नाम के दो दोस्त रोज शाम को साथ बैठकर दारू पीते थे। एक दिन पीने के दौरान दोनों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया। मसीह को भारी पड़ता देख इमरान ने शोर मचा दिया कि वह पैंगबर मोहम्मद साहब को बुरा भला कह रहा है। बस देखते ही देखते हजारों लोग जमा हो गए। पूरे इलाके में दंगा हो गया और सैकड़ों घर आग के हवाले। किसी के पास इस बात का सबूत नहीं था कि मसीह ने दरअसल कहा क्या है। किसी ने यह जानने की जहमत भी नहीं उठाई कि जब इस्लाम में दारू पीना, बनाना या बेचना हराम है तो फिर इमरान किस हक से इस काम को बेखौफ होकर अंजाम दे रहा था। इससे पहले ब्लैसफैमी का इल्जाम लगाकर वहां एक गवर्नर को सरेआम कत्ल करने की घटना अभी भूली नहीं है।
वह दिन दूर नहीं जब फिल्में भी इस कानून के असर से बच नहीं पाएंगी। जिस तरह स्मोकिंग का सीन आने पर- सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है-जैसी वैधानिक चेतावनी का स्टीकर लगाना जरूरी होता है, उसी तरह-हुजूर इस कदर यूं न इतरा के चलिए, कोई मनचला आ के पकड़ लेगा आंचल- जैसे गाने फिल्माए जाने के वक्त वैधानिक चेतावनी का स्टीकर लगाना होगा कि 16 साल से कम उम्र में छेड़खानी करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।   

बुधवार, 23 जनवरी 2013

धर्म न पूछो दिग्गी का



जात न पूछो साधु की, यह कहावत तो मैंने बचपन में ही सुन ली थी, अब जबकि जवानी भी पीछे छूटती जा रही है, तब एक नई कहावत सुन रहा हूं, धर्म न पूछो दिग्गी का। दिग्गी तो आप समझ ही गए होंगे। वही कांग्रेस के दिग्विजय सिंह। राजा। राजाओं का वैसे भी कोई धर्म नहीं होता। न हिंदू, न मुस्लिम, न सिख न ईसाई, न यहूदी और न... । उन्हें बस राजधर्म निभाने की सीख दी जाती थी। राजधर्म से सभी राजा बंधे होते थे। पर जमाना बदला, तो राजधर्म के मायने भी बदल गए। अब हर राजा राजधर्म की अपने हिसाब से व्याख्या करता है। सीधे शब्दों में कहें तो राजधर्म के मामले में सहूलियत का समाजशास्त्र लागू होता है। जिसे जैसे सहूलियत हुई, उसने उसी हिसाब से राजधर्म तय कर लिया।
दिग्गी राजा पर लौटते हैं। लेकिन लौटने के लिए फिर एक पुरानी कहावत को सीढ़ी के तौर पर इस्तेमाल कर रहा हूं। कहा जाता है, रस्सी जल गई, ऐंठ न गई। रियासतें तो देश की आजादी के साथ ही खत्म हो गई थीं। बची खुची शान इंदिरा गांधी के जमाने में प्रिवी पर्स के खात्मे के साथ चमक खो बैठी। लेकिन शायद, दिग्गी की तरह कई राजा किस्मत वाले थे, जिन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर एक बार फिर से राज करने का मौका मिला। सूबा मध्य प्रदेश निहाल हो गया, दिग्गी जैसा राजा पाकर। पर लोकतंत्र के जमाने में शासक वही होता है, जिसके पास जनादेश होता है। जनता जिसे चाहती है, उसे अपना राजा मानती है। जिससे मन भर गया, उसे कुर्सी से उतार दिया।
दिग्गी राजा की सूबेदारी चली गई, तो उन्होंने युवराज के यहां डेरा डाल दिया। अपने बड़बोलेपन से बहुत कम समय में दरबार में खासा दबदबा कायम करने में भी कामयाब रहे। सूबा-सूबा घूमने लगे। अब तो आलम यह है कि कुछ दिन शांत रहें, तो लोगों को बेचैनी होने लगती है। लोग सोचने लगते हैं, बोलने वाले राजा साहेब, चुप क्यों बैठे हैं। हालांकि जल्द ही अपनी चुप्पी तोड़कर राजा साहेब अपनी मौजूदगी का अहसास करा देते हैं। उन्हें अपना राजधर्म याद आ जाता है। दुनिया जिसे आतंकी नंबर एक मानती थी, उसकी मौत के बाद, राजा साहेब उसे ओसामाजी पुकारने लगे। फिर उन्हें लगा कि यह काम तो ओसामा के जिंदा रहते करना चाहिए था। सो अभी हाल में अपनी साहेब की पदवी से मोस्ट वांडेड हाफिज सईद को नवाज कर उन्होंने अपनी गलती सुधार ली।
आतंकियों को भी लगता होगा, कोई तो है, जो उन्हें सम्मान भरी नजरों से देखता है। उनके लिए जी और साहेब जैसे संबोधन का इस्तेमाल करता है। वैसे भी राजा के कद्रदानों की कमी नहीं है। राजा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि साहेब तो हाफिज सईद के साथ चला गया। अब सिर्फ राजा ही कहना पड़ेगा, बेशक उनके पास न सूबा है, न रियासत। बोलते रहिए, राजा, सियासत का यही तकाजा है।