सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

तीसरी क्रांति!

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी’- यह कहावत पुरानी जरूर है, पर इसे सीधे और सपाट तरीके से देखें तो यही लगता है कि यह न केवल सोलह आने सच है, बल्कि कभी पुरानी भी नहीं पडने वाली. यानी बात जब-जब निकलेगी, दूर तलक जाएगी. पर बात और आग ने कब दोस्ती कर ली? दोस्ती भी ऐसी, कि उसकी दुहाई दी जाने लगी. कहा जाने लगा कि बात निकलकर दूर तलक जा सकती है, तो आग क्यों नहीं? आग भभकेगी तो फिर दूर तलक जाएगी.

आग मिस्र में लगी, उसने हुस्नी मुबारक को झुलसा दिया और लोग हैं कि एक-दूसरे को मुबारकबाद दे रहे हैं. वाह रे मुबारक साहेब! ऐसा तो कभी नहीं सोचा होगा आपने. आपके जलने और झुलसने का लोगों को जैसे शिद्दत से इंतजार रहा हो, तभी तो जश्न मना रहे हैं, मुबारकबाद दे रहे हैं. ऐसी कौन-सी गुस्ताखी हो गई, जिसका आपको ही पता नहीं लगा.

कहा जा रहा है कि मिस्र के लोग लोकतांत्रिक सुधारों की मांग कर रहे थे. भ्रष्टाचार से आजिज आ गए थे. अरे भाई, लोकतांत्रिक सुधार की इजाजत देते, उनको अमली जामा पहनाते तो काहे की दिक्कत आती. भ्रष्टाचार कुछ खास लोगों तक सीमित रहेगा तो हो-हल्ला मचेगा ही. सब भ्रष्टाचार कर रहे होते तो कुछ नहीं होता. सब मौज-मस्ती कर रहे होते. अमन चैन होता. आप भी खुश, लोक भी खुश. आखिर इतने सालों तक तो लोगों को आप अच्छे लग ही रहे थे.

आग का भी क्या कहा जाए. जंगल की आग..सॉरी, झाड़ी की आग की तरह जा गिरी खाड़ी में. ट्यूनीशिया तो पहले ही खाक हो चुका, मिस्र दहक रहा था, देखते ही देखते अरब भी चपेट में आ गया. यमन और जार्डन में भी तपिश महसूस की जाने लगी. वहां भी लोग भ्रष्टाचार से आजिज थे. वहां भी लोकतांत्रिक सुधारों की मांग हो रही थी. वहां पेट्रोल मौजूद था. कमी थी बस जलती तीली की. मिसाइल की तरह मिस्र से निकली आग, खाड़ी के पेट्रोल पर तीली की तरह जा गिरी.. फिर तो उसे भभकना ही था.

अभी ज्यादा देर नहीं हुई है. झुलस रहे देशों से गुजारिश है कि हिंदुस्तान की तरफ देखें. हिंदुस्तान से बड़ा लोकतंत्र कौन-सा है. फिर यहां तो भ्रष्टाचार को भी बुरा नहीं माना जाता. इसमें शर्म काहे की. हिंदुस्तान से तो वैसे भी बहुत पुराना नाता रहा है. जब कभी प्राचीन सभ्यता की बात होती है, तो भारत के साथ-साथ मिस्र का जिक्र जरूर आता है. और मिस्र ही क्यों, खाड़ी के देश भी हिंदुस्तानियों के लिए दूर नहीं रहे. हजारों-लाखों हिंदुस्तानी वहां रहते हैं. इसी से वहां का असर यहां देखने को मिल रहा है. वहां पेट्रोल में आग लगी. यहां हिंदुस्तान में पेट्रोल नहीं, तो उसकी कीमतों में ही आग लगी जा रही है.

मान लो भइया, हिंदुस्तान को गुरू. हिंदुस्तानी तो पहले से मुगालता पाले हुए हैं कि उनके देश को ‘विश्व गुरु’ का दर्जा हासिल था. यह दीगर बात है कि भारत का लिखित इतिहास इसकी पुष्टि नहीं करता. हालांकि अभी भी जब-तब पढऩे-सुनने को मिल जाता है कि वह दिन दूर नहीं जब भारत फिर से विश्व गुरू बनेगा.

भारत, खासतौर पर आधुनिक भारत के इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले जानते हैं कि यहां पिछले दो सौ सालों में दो क्रांतियां हुईं. पहली-1857 में, जिसे इतिहासकारों ने ‘सैनिक’ (सिपॉय) शब्द तक सीमित करने में कोई कसर बाकी नहीं लगाई. इसमें खून-खराबा तो हुआ, पर यह क्रांति महज पुरानी दिल्ली तक सिमट कर रह गए आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की रियासत और तकरीबन तीन सौ सालों तक हिंदुस्तान पर राज करने वाली मुगलिया हुकूमत के खात्मे का सबब बनी. फिरंगी और दमदारी से यहां काबिज हो गए. और पूरे 90 सालों तक उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं रहा.

दूसरी क्रांति के अगुवा बने जेपी यानी जयप्रकाश नारायण. 1974 में कांग्रेस सरकार के खिलाफ उन्होंने ‘समग्र’ क्रांति का नारा दिया. 1857 का सच जानने के लिए तो महज किताबें ही हैं, पर 1974 देखने वाले तो तमाम लोग तो अभी बुजुर्ग भी नहीं हुए हैं. उन सभी को याद होगा कि दूसरी क्रांति का क्या हश्र हुआ. थोड़े दिनों के लिए जरूर जनता की पार्टी यानी जनता पार्टी का शासन आया, पर चूंकि राज करने की उन्हें आदत नहीं थी, सरकार चलाने के लिए ‘जरूरी योग्यता’ नहीं थी, लिहाजा जल्द ही लोगों का मोह भंग हो गया. और फिर से आ गया इंदिराजी का राज. देश हित में वह बलिदान हो गईं तो राजीवजी आए. वह गए तो बीच में न जाने कितने आए-गए, तमाम लोगों को तो उनका क्रम भी ठीक से याद नहीं होगा. हां अटल जी ने जरूर अपनी यादें छोड़ीं. फिर सत्ता में आई संप्रग और उसके नेता बने मनमोहन सिंह.

अब इसे क्या कहा जाए कि जब एक तरफ मनमोहन सिंह के सत्ता में रहने का रिकार्ड गिनाया जा रहा है, तभी दूसरी तरफ मिस्र और खाड़ी देशों के हाल से लोगों का जोश उफान मार रहा है. मिस्र में तहरीर चौक पर टैंक और टैंक पर सवार जनता को लोगों ने टीवी स्क्रीन पर पिछले हफ्ते कई बार देखा. सडक़ पर टैंक देखकर चार-पांच साल पहले पड़ोसी देश नेपाल में हुई क्रांति की याद भी उनके जेहन में ताजा हो गई. हिंदुस्तानियों को लग रहा है कि तीसरी क्रांति का वक्त आ गया है. अब ‘संप्रग’ क्रांति होनी चाहिए. पर यह मिस्र नहीं, हिंदुस्तान है. यहां तो जिसके खिलाफ क्रांति होती है, वही और मजबूत होकर उभरता है. वैसे भी जिस देश की जनता का महज लाल पगड़ी देखकर ही गांव छोडक़र भाग जाने का इतिहास रहा हो, टैंक देखकर उसका क्या हाल होगा, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. इसलिए संप्रगवालों, निश्चिंत रहिए. मौज-मस्ती कीजिए. भ्रष्टाचार को लोकाचार बने रहने दीजिए. अव्वल तो क्रांति होगी नहीं, और अगर होती भी है तो वह संप्रग के हित में ही होगी.

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