सोमवार, 18 अप्रैल 2011

जात न पूछो..


जात न पूछो साधु की- वाली कहावत पुरानी हो चली है. अब तो भइया, -जात न पूछो मूर्तिवाले की. जिसकी मूर्ति बन गई, समझो जात-धर्म से ऊपर उठ गया. अब इसके बाद भी कोई जात की बात करता है, तो हो-हल्ला तो मचेगा ही.
राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की मूर्ति देश में कई जगह लगी है. तीनों ने आजादी की लड़ाई लड़ी थी. देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए थे. अब चूंकि देश में कांग्रेस नीत सरकार है, सो सत्तारूढ़ पार्टी को लगा कि उसे कुछ भी करने की आजादी है. बस उसने अपनी पत्रिका-कांग्रेस संदेश- में अपनी उसी आजादी का इस्तेमाल करते हुए आजादी के लिए शहीद हुए इन रणबांकुरों की जात का उल्लेख कर दिया. जोश में वह यह भूल गई कि जो मूर्तिमान हो गया, वह जात-पात से ऊपर उठ गया. उसकी जात का उल्लेख किसी भी हालत में नहीं करना है. उल्लेख मात्र से ही उनकी शहादत पर, उसकी उपलब्धियों पर, उसके योगदान पर धब्बा लग जाएगा. पर ऐसा हुआ, तो विपक्षी दल भाजपा को शोर मचाने का मौका मिल गया. कांग्रेस को सफाई देने के लिए बाकायदा महात्मा गांधी और मोतीलाल नेहरू तक को बीच में लाना पड़ा. उसे कहना पड़ा कि किताबों में गांधी जी को बनिया और मोतीलाल नेहरू को कश्मीरी ब्राह्मण बताया गया है.
हिसाब बराबर करने के लिए कांग्रेस बेचैन थी. उसको ज्यादा इंतजार भी नहीं करना पड़ा. भाजपा की चंड़ीगढ़ ईकाई की वेबसाइट पर देशरत्न, संविधान निर्माता, बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को अस्पृश्य बताया गया था. बात यहीं तक रहती तब भी ठीक था. उसमें उनकी जात का भी उल्लेख था. हालांकि ऐसा केवल भाजपा की वेबसाइट में ही नहीं है. अयोध्या सिंह की बहुचर्चित पुस्तक- भारत का मुक्ति संग्राम- सहित तमाम किताबों मे बहुत साफ-साफ शब्दों में इस तथ्य का उल्लेख है. पर जो गलती कांग्रेस ने की थी, वही भाजपा ने भी कर दी थी. वह भूल गई कि बाबा साहेब मूर्तिमान हो चुके हैं. देश में जितनी संख्या में उनकी मूर्तियां लगी हैं, उतनी तो शायद किसी की भी नहीं. सो अबकी कांग्रेस ऊपर थी, भाजपा नीचे. मौके की नजाकत भांपते हुए भाजपा की चंडीगढ़ ईकाई ने आनन फानन में अपनी बेवसाइट से बाबा साहेब की जात वाला हिस्सा हटा दिया.
लेकिन भारत तो ऐसा देश है, जहां की राजनीति में हर बात जात से ही शुरू होती है, और जात पर ही खत्म होती है. और फिर ये तो राजनीति के शलाका पुरुष हैं. कभी कांग्रेस को ब्राह्मणों और भाजपा को (जनसंघ के जमाने से ही) बनियों की पार्टी माना जाता था. माननीय कांसीरामजी ने जात जो फार्मूला दिया, उसकी कामयाबी से भारतीय राजनीति के सारे समीकरण बदल गए. बहनजी भी सर्वसमाज की बात करती हों, पर उनके सर्वसमाज का मतलब क्या है, इसे सब जानते हैं. किस पार्टी का वोट बैंक कौन है, किसी को बताने की जरूरत नहीं है. दलितों के ये दोनों मसीहा मूर्तिमान हो चुके हैं. लखनऊ में बहनजी की आदमकद मूर्ति देखी जा सकती है. उम्मीद है, भविष्य में कम से कम वह गलती नहीं दुहराई जाएगी, जो इस मामले में कांग्रेस और भाजपा कर चुकी हैं.
भाई रामबिलास पासवानजी,  मुलायम सिंह यादवजी और लालू प्रसाद यादवजी ने भी जात के जादू से भारतीय राजनीति में नई इबारत लिखी. जब तक ये लोग मूर्तिमान नहीं हो जाते, तब तक, जो चाहे इनकी जात से खुद को जोड़ सकता है. अगर किसी समर्थक या चेले ने मूर्ति बनवा दी, तो फिर इनकी जात का जिक्र करना भी अपराध हो जाएगा. अगर आपमें से किसी को इनकी मूर्ति लगने की कोई जानकारी हो, तो उसे जरूर शेयर कीजिए. वरना न जाने कौन कब...

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