मंगलवार, 3 जुलाई 2012

कार और बेकार फिर चर्चा में


बात कुछ ऐसी है कि सत्तर के दशक में लौटते हैं। आम चुनाव सिर पर थे, मुकाबले में थीं इंदिरा गांधी की कांग्रेस पार्टी और अटल, आडवानी और बलराज मधोक का भारतीय जनसंघ। चुनाव में कांग्रेस ने नारा उछाला-जनसंघ की क्या पहचान, बगल में छुरी मुंह में राम। पर इसके जवाब में आए नारे बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला दिया। दरअसल उस समय बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बनकर उभरा था जबकि युवराज संजय गांधी मारूति कार बनाने की ठाने बैठे थे। नतीजे आए तो पता लगा कि मां-बेटे को यह नारा बहुत भारी पड़ा।
कार अब एक बार फिर चर्चा में है। देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में भत्ता पा रहे हैं बेकार और माननीयों को मिल रही कार। यह अलग बात है कि इस बार बेकार और कार दोनों का ताल्लुक युवराज से है, मां राजनीति में कभी थीं नहीं और पिताश्री का इससे लेना देना नहीं।
धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव के पुत्र माननीय अखिलेश यादव को इस साल हुए यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मीडिया और सपा कार्यकर्ताओं ने युवराज की पदवी से नवाजा। उन्हें कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी के मुकाबिल खड़ा किया गया। अखिलेश के लिए तो यह बहुत बड़ी बात थी, अलबत्ता कांग्रेसी युवराज यूपी तक ही सिमट कर रह गए। सारी ताकत झोंकने के बाद भी नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए। जबकि उनके कद के हिसाब से यह बहुत छोटा चुनाव था। बड़बोलों की बोलती तो बंद हुई ही, युवराज को भी तब से ज्यादा बोलते नहीं देखा-सुना गया। जीत का सेहरा सपाई युवराज अखिलेश के सिर बंधा। वह महाराज बन गए। फिर चुनाव पूर्व किए गए अपने सभी वायदों पर उन्होंने अमल भी किया। उस वायदे पर भी, जिसमें कहा गया था कि सपा की सरकार बनी तो सूबे के बेकारों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा। भत्ता पाकर बेरोजगार निहाल हो गए। उन्होंने अब नौकरी भी तलाशना छोड़ दिया है। वैसे भी उन्हें जरूरत क्या है नौकरी की। जब घर बैठे ही पेंशन मिल रही हो, तो पसीना बहाने से क्या फायदा।
बेकारों के बाद युवराज से महाराज बने अखिलेश को ख्याल आया माननीयों का, सो उन पर मेहरबान हो गए। उन्होंने विधानसभा में ऐलान कर दिया कि सूबा भले ही वित्तीय संकट से जूझ रहा हो, पर जिन माननीयों के पास चार पहिया वाहन नहीं हैं, वे अपने लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड से 20 लाख रुपये तक की कार खरीद सकते हैं। अब अगर, सीएम की घोषणा का लाभ उठाते हुए सभी माननीयों ने सचमुच अपने लिए कार खरीद लिया, तो सूबे के सरकारी खजाने को करीब 80 करोड़ रुपए का चूना लगेगा। कानून की बात करें तो उसके मुताबिक लोकल एरिया डेवलपमेंट फंड का इस्तेमाल सिर्फ इलाके के विकास के मद में ही किया जा सकता है। व्यक्तिगत लाभ के लिए तो उसका इस्तेमाल कतई नहीं होना चाहिए। पर राजा तो आखिर राजा ही होता है। हमने जिस देश के कानून की नकल की है, उसमें साफ-साफ लिखा है- किंग कैन डू नो रांग। यानी राजा तो गलती कर ही नहीं सकता है। ईश्वर आपकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त करे राजा साहब।


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