दफ्तर से घर पहुंचा ही था कि आठ साल का मेरा भतीजा दौड़ता हुआ आया. बोला, एक सवाल पूछना है ताऊजी. उसे जैसे बस मेरे घर आने का इंतजार था. मैंने कहा, हाथ-मुंह धो लूं, फिर पूछना. लेकिन इतना इंतजार... बच्चा जो ठहरा. एक ही सांस में बोल गया, हाथ लगाने से मछली क्यों नहीं डरती? पानी से बाहर निकालने पर क्यों नहीं मरती? तुरंत जवाब नहीं सूझा तो मैंने कहा, थोड़ी देर में बताऊंगा.
सोचने लगा, अचानक इसे मछली की याद कहां से आ गई? कहीं किसी मुहावरे की तो बात नहीं कर रहा? हिंदी की कोई किताब तो इसके हाथ नहीं लग गई. आखिर ऐसा सवाल इसके दिमाग में आया कहां से? मन बचपन की तरफ डग भरने लगा. महाभारत वाले अर्जुन की नजर मछली की आंख पर थी, पर मेरी आंखों के सामने साबुत मछली थी.
उस मुहावरे का ख्याल आया, बड़ी मछली छोटी मछलियों को खा जाती है. हो सकता है किसी बड़ी मछली ने छोटी मछलियों को खा लिया हो, अंत में बड़ी वाली ही बची होगी, सो हाथ लगाने से भला क्यों डरेगी. पानी से बाहर निकालेंगे तो तुरंत क्यों मरेगी. भतीजे की जगह किसी बड़े ने यही सवाल किया होता तो और भी मुश्किल हो जाती. फिर तो यही होता, न जाने किस मछली की बात कर रहे हैं.
ड्राइंगरूम के एक्वेरियम में तैरने वाली मछलियों की, सिन्हा साहेब के लॉन में बने पॉंड में इठलाती मछलियों की, या ताल-तलैया, नदी और समुंदर वाली मछलियों की. खैर जब इस मुहावरे में कुछ नहीं मिला तो मछलियों से जुड़े दूसरे लोकप्रिय मुहावरे की तरफ ध्यान गया. एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है. हो सकता है गंदी हो गई मछलियों ने डरना छोड़ दिया हो, मरना भूल गई हों.
कहीं गंदी मछलियों के बारे में तो नहीं पूछ रहे हैं. ऐसा है तो समाज पर नजर डालनी होगी. नेता-अभिनेता दोनों को समाज का प्रतिनिधि माना जाता था. दोनों का बहुत ग्लैमर हुआ करता था. लोग एक झलक पाने को बेताब रहते थे. बुरा हो छोटे पर्दे वालों का, हर प्रोग्राम में खासतौर पर बुलाकर इन्हें आम बना दिया. कभी इज्जत को लेकर लोग डरते थे, बेशर्म न हुए तो मरते थे, पर समय ने सारा समाजशास्त्र बदल दिया. पकड़े गए, जेल गए, छापा पड़ा, घर से नगदी बरामद हुई- समझो इज्जत बढ़ गई. समाज में रुतबा बढ़ गया. थोड़ा और नाम हुआ तो माननीय बनना पक्का.
बेशर्मी की बात क्या करें. उसकी कोई हद नहीं है. कभी खबर आई कि बिपाशा ने बदन उघाड़ू शाट्स दिए हैं, तो कभी पता लगा कि मंदिरा ने किसी विज्ञापन के लिए टॉपलेस पोज दी है. बिकनी देखते-देखते 40-50 साल हो गए. अब तो मल्लिका भी पीछे छूट गई. आंख से काजल चुराने की तरह उनके सिर से मल्लिका-ए-बेशर्मी का ताज न जाने कब और किसने उड़ा दिया. शोले का वह डायलाग वाकई पुराना हो गया, जो डर गया, समझो मर गया. दलेर साहेब को भी छुई-मुई गाए बहुत दिन हो गए. अब मछलियां न तो डरती हैं, न मरती हैं.
कहते हैं सिनेमा समाज का दर्पण होता है. यानी सिनेमा में वही होता है, जो कुछ समाज में चल रहा है. नए जमाने का सिनेमा बताता है कि इश्क कमीना हो गया. पप्पू साला काम से गया. लोग गुनगुनाने हैं- पप्पू कांट डांस साला, पप्पू नाच... अच्छी तरह याद है, जब हिंदी फिल्मी गीतों को उनके बोल के लिए ही जाना जाता था. पचास और साठ के दशक के तमाम गाने अभी तक जुबान से उतर नहीं पाए तो उसकी वजह उनके बोल भी हैं. कवि प्रदीप, इंदीवर, मजरूह सुल्तानपुरी, शकील बदांयूनी को कैसे भूल सकते हैं. अमर गीतकार, अमर गीत.
हिंदी फिल्मी गीतों का अब भी बहुत जोर है. इसकी वजह भी उनके बोल ही हैं. मुन्नी बदनाम हुई पर पूरी दबंगई के साथ. शीला की जवानी भी रोके नहीं रुक रही. वो तो अच्छा हुआ कि तीस मार खां ने पहले ही हाथ आजमा लिया, वरना हमारे जैसे लोग तो यही सोच रहे थे कि मुन्नी बदनाम हुई तो क्या हुआ, अब शीला जवान हो गई है. कल कोई और बीना या गीता अपना जलवा बिखेरने आएगी. अब शीला और मुन्नी की वजह से किसी लडक़ी ने जान देने की कोशिश की, किसी ने स्कूल से नाम कटवा लिया या किसी ने मुकदमा कर दिया तो उसमें गाने का क्या गुनाह.
बहरहाल, जब कोई जवाब नहीं मिला तो मैंने भतीजे को बुलाकर कहा, भई सवाल बहुत मुश्किल है, मुझे इसका जवाब नहीं मिला, तुम खुद ही बता दो. बोला बहुत सिंपल है. मेरे दोस्तों ने एक नई पोयम लिखी है- मछली जल की रानी है, जीवन उसका पानी है. मुन्नी हुई पुरानी है, शीला की जवानी है. मछली का डरना और मरना हम लोगों को अच्छा नहीं लग रहा था. मैंने कहा चलो, अच्छा हुआ मुन्नी और शीला ने मछलियों को डरने-मरने से बचा लिया, वरना अभी तक तो पीपल फॉर एनिमल वाली बहूजी का ध्यान भी इनकी ओर नहीं गया था.
आपका अंदाजे बयां ही कुछ और है। बहुत ही अच्छा लगा आपका कहने का अंदाज। अभी पूरा नहीं पढ़ा लेकिन एक एक कर सारे चिट्ठे जरूर पढ़ूंगा। वैसे आपको रैगिंग से डरने की जरूरत नहीं, यहां सारे आपके जूनियर ही हैं।
जवाब देंहटाएंमछली को आपने खूब सैर कराई... भ्रष्टाचार के तालाब से शीला के समंदर तक... रूपक का बेहतरीन इस्तेमाल... भतीजों के सवाल चाचा के पसीने छुड़ाते रहें, यही दुआ रहेगी।
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